अव्यक्त कथा
एक माँ ने मुझे छोड़ा, एक माँ ने
अपनाया,
अपने आँचल में मुझे भरकर, फूला और
फलाया ।
संघर्ष
किया, दुख पाया,
दुख
का सागर मैं भर लाया ।
माँ व रवि ने मुझे पाला,
मेरी इस नई काया में मुझे ढाला ।
करुणा
व स्नेह से मुझे सजाया,
दूसरों
का सहायक मेरी माँ ने मुझे बनाया ।
अटल, अचल खड़ा रहता हूँ जिस जगह मै
था आया,
छोटा था कब बड़ा हुआ, समझ न पाया ।
एक
संध्या मेरी शरण में एक म्रग आया,
जिसे
बचाते मैंने अपना एक हाथ गंवाया ।
मेरी आँखों के सामने मेरा परिवार हो
रहा है नष्ट,
जिसे देख मेरे दिल में हो रहा अपार
कष्ट ।
माना
मैंने माँ को कष्ट दिया,
उनका
वक्श छलनी किया ।
तब भी उसने मुझे गले लगाया,
आशीश दे गोद में बैठाया ।
किससे
करूँ व्यक्त अपनी यह कथा,
काश
मैं व्रक्ष न होता ।
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